Thursday 9 August 2018

Maithili Gaghal

पाबि अहाँकेँ  निखरि गेलौं
सबटा  दु:ख  बिसरि  गेलौं

हँ मे हँ कहलौं तँ निक छी
नै कहलौं तँ उखरि गेलौं

जे बनेलक अहाँकेँ लोक
तकरे खा' क' पसरि गेलौं

खाँहिस छ'ल तँ केलौं प्रीति
मन  भरिते  ससरि  गेलौं

कने जे ने आदर देलौं तँ
कपार पर चहरि गेलौं

एते ने झूठ स्वप्न देखेलौं
मनसँ  अहाँ उतरि गेलौं
            - विजय कुमार ठाकुर

Friday 8 June 2018

गजल

आबै छी तँ फेरि जाउ नै
मानै  छी  बात जनाउ नै

हमरालें की की केलौं से
आंगुर   पर    गनाउ   नै

हरेक पल  केँ मोल छै
नेहोरा अछि लजाउ नै

जाति अपन भिन अछि
बात  ई  बीचमे लाउ  नै

ल' लेत जान इन्तिहान
बेर - बेर  अजमाउ  नै
           - विजय कुमार ठाकुर

Sunday 20 May 2018

मैथिली गजल

निपल अंगना निपले रहलै
जरल  मानस  जरले रहलै

आस छ'ल जे चलि जेतै अखार
भिजल   नएन   भिजले   रहलै

गछि क' नोत नै एलखिन नाह
काटल  भालरि  काटले  रहलै

खइतौं  एेँठ  बढबितहुँ  नेह
साजल सचार साजले रहलै

आब निक दिवस एतै कहिया
बारल  जनता   बारल   रहलै
              - विजय कुमार ठाकुर

Thursday 12 April 2018

गजल

कपारक  लिखल मेटत के
नियति मे नहि त' भेटत के

दीनक स्वर्ग छै भीतक घर
ईंटा  पर  सँ  ईंटा  गेंटत के

अपने जखन भ' जेँ विमुख
छिड़िएल  लागि समेटत के

ठेस  जे लागल लोहू बहैए
आँचड़ केँ फाड़ि लपेटत के

अपन बुझि क खुशी केँ ठोप
दुखक  जलधि  मे  फेँटत के
              - विजय कुमार ठाकुर

Saturday 24 March 2018

गजल

मोनक बात कहल नै भेल
हाथ ओकर गहल नै भेल

कहिते रहलौं सच के सच
हवा के संग बहल नै भेल

इमानक हाथ नै छोड़लौं तेँ
भीतक  घर  महल  नै भेल

भिन भेलौं गप मोनें रखितौं
दुख  जे  बात तहल नै भेल

साँस चलने कि हम जिन्दा छी
तोर   बिछोह   सहल  नै  भेल
                   - विजय कुमार ठाकुर

Wednesday 21 March 2018

गजल

दुख कहियौ ककरा कान कहाँ छै
एहि  पाथर  में  भगवान कहाँ  छै

अछि  डेग-डेग  पर  रावण  ठाढ
आब राम आ धनुष बान कहाँ छै

सबके घराड़ी पर छै कोठे-कोठा
मुदा ककरो आब दलान कहाँ छै

निज  के  सब  सँ  पैघ बुझैत अछि
ओहि लोक के कहु सम्मान कहाँ छै

हम त मरि गेलौं कोना तोँ जिन्दा छेँ
ओ कहलक जीयै छी, जान कहाँ छै

Wednesday 14 February 2018

कविता

मूल रचना - जावेद अख्तर
मैथिली अनुवाद - विजय कुमार ठाकुर

कोना कहु हम अहाँके, हमरा लेल अहाँ के छी
कोना कहु
कोना कहु हम अहाँके
अहाँ धड़कन के गीत छी, जीवन के अहाँ संगीत छी
अहाँ जनम, अहाँ भजन
अहाँ धवल, अहाँ नवल
अहाँ सबटा खुसी, अहाँ रति छी
अहाँ प्रीत छी, मनमीत छी
आँखि मे अहाँ, अखिआस मे अहाँ
नीन में अहाँ, स्वप्न में अहाँ
नोर में अहाँ, कहर में अहाँ
अहाँ हमर मन में, मति में
अहाँ दिन में, अहाँ राति में
अहाँ साँझ में, अहाँ भोर में
अहाँ काम में, अहाँ अटोर में
हमरा लेल पाएब अहीं
हमरा लेल चुकब अहीं
हमरा लेल हाँसब अहीं
हमरा लेल काँनब अहीं
आओर जागब सूतब अहीं
जाऊ कतउ देखु कतउ
अहाँ एतए अहाँ ओतए
कोना कहु हम अहाँके
अहाँ बिनु त हम किछु नैं छी
कोना कहु हम अहाँके, हमरा लेल अहाँ के छी

कोना कहु हम अहाँके
इ जे अहाँक रूप अछि
जिनगी के धूप अछि
चन्दन स साजल बदन
बहैत अछि ओहिमें एगो अगन
इ चमक आ  इ धमक, अहाँके वायु स भेटल
केस मेंघ स भेटल
ठोर में कली खिल गेल
आँखि के झील मिल गेल
मुँखरा पर समटल चाँदनी
आवाज में अछि रागिनी
शीशा एहेन अंग अछि
फुल जेहेन रंग अछि
धार एहेन चाल अछि
की छटा अछि, की गाल अछि
इ बदन के रंग, जेना तितली हजार
आँचर के इ छाह, इ बाँहि के आकार
इ स्वप्न के नगर छै
कोना कहु हम अहँके, बिनु अहाँ इ जान जहर छै
कोना कहु हम अहाँके, हमरा लेल अहाँ के छी

कोना कहु हम अहाँके
हमरा लेल अहाँ धरम छी
अहीं विश्वास छी
अहीं पुजा छी हमर
अहीं खाँहिस छी हमर
अहीं आस छी
ताकै छी हम जेकरा हरेक क्षण, ओ अहाँ तस्वीर छी
अहीं हमर तकदीर छी
अहीं नक्षत्र छी हमर
अहीं गत्र छी हमर
जाल एना अहाँ फेरने छी
लागैए जेना अहाँ हमरा घेरने छी
पूरब में अहाँ, पक्ष्चिम में अहाँ
उत्तर में अहाँ, दक्षिण में अहाँ
हमर सकल जीवन में अहाँ
हमरा लेल धीर अहीं
हमरा लेल धेह अहीं
हमरा लेल सागर अहीं
हमरा लेल गागर अहीं
हम देखै बस अहाँके छी
हम सोचै बस अहाँके छी
हम मानै बस अहाँके छी
अहीं हमर पहचान छी
कोना कहु हम अहाँके
अहाँ देवी छी, अहाँ भगवान छी
कोना कहु हम अहाँके, हमरा लेल अहाँ के छी
कोना कहु......
                           -विजय कुमार ठाकुर

Sunday 11 February 2018

गजल

सहज छै त' फेरि संकोच किएक!!

बस  पाँच  दिनक  बात छै
एतवे कहि क' ओ कात छै

सब   रचना   इश्वरक  छै
फेरि छुआए किए गात छै

किछु रीति बाँकी छै औखन
जे  नीक  समाजले  घात  छै

सिंगरहार  नैं  भेल छुच्छ
त'  बुझियौ  नव परात छै

हमरा  दूर   करे'  आहाँ सँ
ओ घर कपड़ा आ भात छै
              - विजय कुमार ठाकुर

Monday 29 January 2018

गजल

हम सपना नै देखबै आब कहिओ
अहाँके बाट नै हेरबै आब कहिओ

सुनर  दिन  एतै  से  आब भरोस नै
दीप आसक नै लेसबै आब कहिओ

बेटी के बिआह केलौं त भेल इ भान
अपन  बेटा  नै  बेचबै  आब कहिओ

निज गोड़ मे गड़ल त खेलौं शपथ
काँट सँ खेत नै बेढबै आब कहिओ

तीन टा शब्दके डर देखेतै जँ केओ
ओहि लोक के नै टेरबै आब कहिए
                      - विजय कुमार ठाकुर

Tuesday 23 January 2018

गजल

छीन  छरहर  गोर  छै
पानो सँ पातर ठोर छै

रौद में केसक छाहरि
वृष्टि में नाचैत मोर छै

टुस्सी सन सोटल नाक
नैन   दुनू  चित्तचोर  छै

भीख में सम्मान मांगै छै
नान्हिए टा बच्चा कोर छै

नेहक  निधान  रहितो
आँखि में भरल नोर छै
         - विजय कुमार ठाकुर

Sunday 21 January 2018

गजल

हम  जपै  छी  अहाँके नाम
अहींके बुझै छी चारू धाम

हमराले त सोन अहाँ छी
अहाँ बुझि लिय बरू ताम

ओ की जानत दीनक दुख
जेकरा  नहि   बहलै  घाम

जन्म जे देलैंन धरा पर
बेचलैंन वेँह द' क' दाम

प्रश्न  नित  हुनक  एतबे
कहु ने कहिआ एबै गाम
           - विजय कुमार ठाकुर

Saturday 20 January 2018

गजल

हम बतही छी जे आस करै छी
अहाँके  उपर  विश्वास  करै छी

मोंनक बात सुनि करि भरोस
बेरि बेरि अहाँ निराश करै छी

इ मानल जे लिखल मेटत के
तैओ मेटबाले उपास करै छी

आढि  छँटबा  में  बितल जीवन
आब गंगा कात में मास करै छी

हम की केलौं नैं देखलौं कहिओ
आन  उपर  उपहास   करै   छी

हमराले  छै  वेँह  भीतक  घर
अहाँ कहु कतए वास करै छी
                 - विजय कुमार ठाकुर

Wednesday 17 January 2018

Gazal

हम अहाँके अपन छी कि आन
बड व्याकुल अछि सुनैले इ कान

अहाँक गोड़ परिते डिह एतै वसंत
एहि  उमेदे  पथ  हेरि  बैस दलान

प्रेमे इश्वर अल्लाह प्रेमे वेद कुरान
अहाँक  आगमन  स  भेलै  ई भान

अंगना फूल फुलेतै दग्ध मोंन जुरेतै
एबै  जखन  गेबै  हम स्वागत गान

नेहक नेओँत बिजहो संग दै छी
सहल नै जेँ आब वियोगक बाण

Thursday 11 January 2018

गजल

बाट ताकै छी औखन
खूब कानै छी औखन

अहाँके  पहिराबै  लेँ
हार गाँथै छी औखन

विधि  स' बान्हल छी
टेमी दागै छी औखन

इआद  क'  अतीत  के
नित झाँखै छी औखन

अहाँ  त्यागि  गेलौं  ई
बात झाँपै छी औखन
                     - विजय कुमार ठाकुर

Tuesday 9 January 2018

गजल

हकासल  रहलौं आजीवन
पिआसल रहलौं आजीवन

नै  बारह  नै  चौदह  बरख
निर्वासल रहलौं आजीवन

हम निक दिनक भरोस में
खबासल रहलौं आजीवन

सुनि क मोनक बात हुनक
उपासल  रहलौं  आजीवन

ठाढ केलौं जकरा ओकरे स
एँड़ासल   रहलौं   आजीवन
             - विजय कुमार ठाकुर

Monday 8 January 2018

गजल

बाट तकैत रहलौं आजीवन
अहाँ ठकैत रहलौं आजीवन

ई अन्तिम छै इएह बिचारि'क
दुख  सहैत रहलौं  आजीवन

अपन  लेल सदत चालनि में
पानि भरैत रहलौं आजीवन

कागक भाखा सुनि'क अंगनामें
आस  करैत   रहलौं  आजीवन

आन बुझत त' करत चौल तेँ
नोर  पोछैत रहलौं आजीवन
            - विजय कुमार ठाकुर

गजल

ओ बतही भीख में मान मांगै छै
हमरा  स'  प्रेमक  दान  मांगै छै

ओ इआद क अतीत के अपन
बाबा पोखैर के मखान मांंगै छै

साड़ी छै गुदरी तैओ पसारि क
खोँछि में ओ दुइभ धान मांगै छै

चान सन पूत के मुँह हेरि क
सिँउथि में सिंदुरदान मांगै छै

कुरीतिक तरुआरि स काटल
ओ अपन नाक-कान मांगै छै
                    - विजय कुमार ठाकुर