Monday 29 January 2018

गजल

हम सपना नै देखबै आब कहिओ
अहाँके बाट नै हेरबै आब कहिओ

सुनर  दिन  एतै  से  आब भरोस नै
दीप आसक नै लेसबै आब कहिओ

बेटी के बिआह केलौं त भेल इ भान
अपन  बेटा  नै  बेचबै  आब कहिओ

निज गोड़ मे गड़ल त खेलौं शपथ
काँट सँ खेत नै बेढबै आब कहिओ

तीन टा शब्दके डर देखेतै जँ केओ
ओहि लोक के नै टेरबै आब कहिए
                      - विजय कुमार ठाकुर

Tuesday 23 January 2018

गजल

छीन  छरहर  गोर  छै
पानो सँ पातर ठोर छै

रौद में केसक छाहरि
वृष्टि में नाचैत मोर छै

टुस्सी सन सोटल नाक
नैन   दुनू  चित्तचोर  छै

भीख में सम्मान मांगै छै
नान्हिए टा बच्चा कोर छै

नेहक  निधान  रहितो
आँखि में भरल नोर छै
         - विजय कुमार ठाकुर

Sunday 21 January 2018

गजल

हम  जपै  छी  अहाँके नाम
अहींके बुझै छी चारू धाम

हमराले त सोन अहाँ छी
अहाँ बुझि लिय बरू ताम

ओ की जानत दीनक दुख
जेकरा  नहि   बहलै  घाम

जन्म जे देलैंन धरा पर
बेचलैंन वेँह द' क' दाम

प्रश्न  नित  हुनक  एतबे
कहु ने कहिआ एबै गाम
           - विजय कुमार ठाकुर

Saturday 20 January 2018

गजल

हम बतही छी जे आस करै छी
अहाँके  उपर  विश्वास  करै छी

मोंनक बात सुनि करि भरोस
बेरि बेरि अहाँ निराश करै छी

इ मानल जे लिखल मेटत के
तैओ मेटबाले उपास करै छी

आढि  छँटबा  में  बितल जीवन
आब गंगा कात में मास करै छी

हम की केलौं नैं देखलौं कहिओ
आन  उपर  उपहास   करै   छी

हमराले  छै  वेँह  भीतक  घर
अहाँ कहु कतए वास करै छी
                 - विजय कुमार ठाकुर

Wednesday 17 January 2018

Gazal

हम अहाँके अपन छी कि आन
बड व्याकुल अछि सुनैले इ कान

अहाँक गोड़ परिते डिह एतै वसंत
एहि  उमेदे  पथ  हेरि  बैस दलान

प्रेमे इश्वर अल्लाह प्रेमे वेद कुरान
अहाँक  आगमन  स  भेलै  ई भान

अंगना फूल फुलेतै दग्ध मोंन जुरेतै
एबै  जखन  गेबै  हम स्वागत गान

नेहक नेओँत बिजहो संग दै छी
सहल नै जेँ आब वियोगक बाण

Thursday 11 January 2018

गजल

बाट ताकै छी औखन
खूब कानै छी औखन

अहाँके  पहिराबै  लेँ
हार गाँथै छी औखन

विधि  स' बान्हल छी
टेमी दागै छी औखन

इआद  क'  अतीत  के
नित झाँखै छी औखन

अहाँ  त्यागि  गेलौं  ई
बात झाँपै छी औखन
                     - विजय कुमार ठाकुर

Tuesday 9 January 2018

गजल

हकासल  रहलौं आजीवन
पिआसल रहलौं आजीवन

नै  बारह  नै  चौदह  बरख
निर्वासल रहलौं आजीवन

हम निक दिनक भरोस में
खबासल रहलौं आजीवन

सुनि क मोनक बात हुनक
उपासल  रहलौं  आजीवन

ठाढ केलौं जकरा ओकरे स
एँड़ासल   रहलौं   आजीवन
             - विजय कुमार ठाकुर

Monday 8 January 2018

गजल

बाट तकैत रहलौं आजीवन
अहाँ ठकैत रहलौं आजीवन

ई अन्तिम छै इएह बिचारि'क
दुख  सहैत रहलौं  आजीवन

अपन  लेल सदत चालनि में
पानि भरैत रहलौं आजीवन

कागक भाखा सुनि'क अंगनामें
आस  करैत   रहलौं  आजीवन

आन बुझत त' करत चौल तेँ
नोर  पोछैत रहलौं आजीवन
            - विजय कुमार ठाकुर

गजल

ओ बतही भीख में मान मांगै छै
हमरा  स'  प्रेमक  दान  मांगै छै

ओ इआद क अतीत के अपन
बाबा पोखैर के मखान मांंगै छै

साड़ी छै गुदरी तैओ पसारि क
खोँछि में ओ दुइभ धान मांगै छै

चान सन पूत के मुँह हेरि क
सिँउथि में सिंदुरदान मांगै छै

कुरीतिक तरुआरि स काटल
ओ अपन नाक-कान मांगै छै
                    - विजय कुमार ठाकुर