Wednesday 21 March 2018

गजल

दुख कहियौ ककरा कान कहाँ छै
एहि  पाथर  में  भगवान कहाँ  छै

अछि  डेग-डेग  पर  रावण  ठाढ
आब राम आ धनुष बान कहाँ छै

सबके घराड़ी पर छै कोठे-कोठा
मुदा ककरो आब दलान कहाँ छै

निज  के  सब  सँ  पैघ बुझैत अछि
ओहि लोक के कहु सम्मान कहाँ छै

हम त मरि गेलौं कोना तोँ जिन्दा छेँ
ओ कहलक जीयै छी, जान कहाँ छै

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