Wednesday 14 February 2018

कविता

मूल रचना - जावेद अख्तर
मैथिली अनुवाद - विजय कुमार ठाकुर

कोना कहु हम अहाँके, हमरा लेल अहाँ के छी
कोना कहु
कोना कहु हम अहाँके
अहाँ धड़कन के गीत छी, जीवन के अहाँ संगीत छी
अहाँ जनम, अहाँ भजन
अहाँ धवल, अहाँ नवल
अहाँ सबटा खुसी, अहाँ रति छी
अहाँ प्रीत छी, मनमीत छी
आँखि मे अहाँ, अखिआस मे अहाँ
नीन में अहाँ, स्वप्न में अहाँ
नोर में अहाँ, कहर में अहाँ
अहाँ हमर मन में, मति में
अहाँ दिन में, अहाँ राति में
अहाँ साँझ में, अहाँ भोर में
अहाँ काम में, अहाँ अटोर में
हमरा लेल पाएब अहीं
हमरा लेल चुकब अहीं
हमरा लेल हाँसब अहीं
हमरा लेल काँनब अहीं
आओर जागब सूतब अहीं
जाऊ कतउ देखु कतउ
अहाँ एतए अहाँ ओतए
कोना कहु हम अहाँके
अहाँ बिनु त हम किछु नैं छी
कोना कहु हम अहाँके, हमरा लेल अहाँ के छी

कोना कहु हम अहाँके
इ जे अहाँक रूप अछि
जिनगी के धूप अछि
चन्दन स साजल बदन
बहैत अछि ओहिमें एगो अगन
इ चमक आ  इ धमक, अहाँके वायु स भेटल
केस मेंघ स भेटल
ठोर में कली खिल गेल
आँखि के झील मिल गेल
मुँखरा पर समटल चाँदनी
आवाज में अछि रागिनी
शीशा एहेन अंग अछि
फुल जेहेन रंग अछि
धार एहेन चाल अछि
की छटा अछि, की गाल अछि
इ बदन के रंग, जेना तितली हजार
आँचर के इ छाह, इ बाँहि के आकार
इ स्वप्न के नगर छै
कोना कहु हम अहँके, बिनु अहाँ इ जान जहर छै
कोना कहु हम अहाँके, हमरा लेल अहाँ के छी

कोना कहु हम अहाँके
हमरा लेल अहाँ धरम छी
अहीं विश्वास छी
अहीं पुजा छी हमर
अहीं खाँहिस छी हमर
अहीं आस छी
ताकै छी हम जेकरा हरेक क्षण, ओ अहाँ तस्वीर छी
अहीं हमर तकदीर छी
अहीं नक्षत्र छी हमर
अहीं गत्र छी हमर
जाल एना अहाँ फेरने छी
लागैए जेना अहाँ हमरा घेरने छी
पूरब में अहाँ, पक्ष्चिम में अहाँ
उत्तर में अहाँ, दक्षिण में अहाँ
हमर सकल जीवन में अहाँ
हमरा लेल धीर अहीं
हमरा लेल धेह अहीं
हमरा लेल सागर अहीं
हमरा लेल गागर अहीं
हम देखै बस अहाँके छी
हम सोचै बस अहाँके छी
हम मानै बस अहाँके छी
अहीं हमर पहचान छी
कोना कहु हम अहाँके
अहाँ देवी छी, अहाँ भगवान छी
कोना कहु हम अहाँके, हमरा लेल अहाँ के छी
कोना कहु......
                           -विजय कुमार ठाकुर

Sunday 11 February 2018

गजल

सहज छै त' फेरि संकोच किएक!!

बस  पाँच  दिनक  बात छै
एतवे कहि क' ओ कात छै

सब   रचना   इश्वरक  छै
फेरि छुआए किए गात छै

किछु रीति बाँकी छै औखन
जे  नीक  समाजले  घात  छै

सिंगरहार  नैं  भेल छुच्छ
त'  बुझियौ  नव परात छै

हमरा  दूर   करे'  आहाँ सँ
ओ घर कपड़ा आ भात छै
              - विजय कुमार ठाकुर