Saturday 24 March 2018

गजल

मोनक बात कहल नै भेल
हाथ ओकर गहल नै भेल

कहिते रहलौं सच के सच
हवा के संग बहल नै भेल

इमानक हाथ नै छोड़लौं तेँ
भीतक  घर  महल  नै भेल

भिन भेलौं गप मोनें रखितौं
दुख  जे  बात तहल नै भेल

साँस चलने कि हम जिन्दा छी
तोर   बिछोह   सहल  नै  भेल
                   - विजय कुमार ठाकुर

Wednesday 21 March 2018

गजल

दुख कहियौ ककरा कान कहाँ छै
एहि  पाथर  में  भगवान कहाँ  छै

अछि  डेग-डेग  पर  रावण  ठाढ
आब राम आ धनुष बान कहाँ छै

सबके घराड़ी पर छै कोठे-कोठा
मुदा ककरो आब दलान कहाँ छै

निज  के  सब  सँ  पैघ बुझैत अछि
ओहि लोक के कहु सम्मान कहाँ छै

हम त मरि गेलौं कोना तोँ जिन्दा छेँ
ओ कहलक जीयै छी, जान कहाँ छै