कपारक लिखल मेटत के
नियति मे नहि त' भेटत के
दीनक स्वर्ग छै भीतक घर
ईंटा पर सँ ईंटा गेंटत के
अपने जखन भ' जेँ विमुख
छिड़िएल लागि समेटत के
ठेस जे लागल लोहू बहैए
आँचड़ केँ फाड़ि लपेटत के
अपन बुझि क खुशी केँ ठोप
दुखक जलधि मे फेँटत के
- विजय कुमार ठाकुर
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