पाबि अहाँकेँ निखरि गेलौं
सबटा दु:ख बिसरि गेलौं
हँ मे हँ कहलौं तँ निक छी
नै कहलौं तँ उखरि गेलौं
जे बनेलक अहाँकेँ लोक
तकरे खा' क' पसरि गेलौं
खाँहिस छ'ल तँ केलौं प्रीति
मन भरिते ससरि गेलौं
कने जे ने आदर देलौं तँ
कपार पर चहरि गेलौं
एते ने झूठ स्वप्न देखेलौं
मनसँ अहाँ उतरि गेलौं
- विजय कुमार ठाकुर