Thursday 12 April 2018

गजल

कपारक  लिखल मेटत के
नियति मे नहि त' भेटत के

दीनक स्वर्ग छै भीतक घर
ईंटा  पर  सँ  ईंटा  गेंटत के

अपने जखन भ' जेँ विमुख
छिड़िएल  लागि समेटत के

ठेस  जे लागल लोहू बहैए
आँचड़ केँ फाड़ि लपेटत के

अपन बुझि क खुशी केँ ठोप
दुखक  जलधि  मे  फेँटत के
              - विजय कुमार ठाकुर